प्रतापगढ़ जिले का इतिहास, History of Pratapgarh
प्रतापगढ़ जिले का इतिहास |
दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम आपको बतायेगे उत्तर प्रदेश के एक जिले प्रतापगढ़ की वैसे to प्रतापगढ़ कुंडा के बाहुबली विधायक और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी की वजह से ज्यादा प्रसिद्ध है लेकिन आज हम आपको प्रतापगढ़ जिले का इतिहास बताने वाले है तो आप इस पोस्ट को इसलिए पढना चाहते है क्युकी आप लोग प्रतापगढ़ का इतिहास जानना चाहते है इसके पीछे बहुत लम्बा इतिहास है उसे समझने से पहले आप ये किले की तश्वीर ध्यान से देखे
प्रतापगढ़ का किला |
क्युकी अगर ये किला न होता तो शायद प्रतापगढ़ का नाम आज तिरोल होता यह किला प्रतापगढ़ घंटाघर से 7.5 किलोमीटर की दुरी पर प्रतापगढ़ सिटी नामक स्थान पर स्थित है इस किले का नाम है प्रतापगढ़ यानी प्रताप का किला इसी प्राचीन किले के नाम पर प्रतापगढ़ जनपद का नमांकन हुआ इसका इतिहास जानने के लिए हमे 700 साल पीछे कालयात्रा करनी पड़ेगी तो आइये चलते है !
प्रतापगढ़ जिले का इतिहास
13वी शताब्दी में झूसी स्टेट में राजा सुखराम सिंह का राज था राजा का ज्येष्ठ पुत्र ही वंशानुक्रम नियमावली के आधार पर राजा बनने का प्रथम अधिकार रखता था और इसी आधार पर इनके पुत्र निर्वाहन सिंह को राजा घोषित किया गया राजा निर्वाहन सिंह के उपरांत इकलौते पुत्र वीर सिंह ने राजभार संभाला किन्तु एक फ़क़ीर द्वारा राजा वीर सिंह की हत्या कर दी गयी वीर सिंह की हत्या के बाद राजकुमार लाखन सिंह को झूसी राज्य छोड़कर अन्य राज्य की स्थापना करनी पड़ी उसका नाम रखा गया हुन्दौर राजा लाखन के सबसे छोटे पुत्र राजा जयसिंह ने सन 1328 के आसपास अरोड़ नामक एक अन्य राज्य की स्थापना की यही अरोड़ आगे चलकर प्रतापगढ़ का रूप लेने वाली था राजा जय सिंह के बाद राजाओ की 10 पीढ़िया बदली !
जिनके है नाम क्रमशः : राजा खान सिंह, राजा पृथ्वी सिंह, राजा लोध सिंह, राजा सुल्तान सिंह,राजा मुनियार सिंह, राजा गौतम सिंह, राजा संग्राम सिंह, राजा संग्राम सिंह, राजा रामचंद्र सिंह, राजा लक्ष्मीनारायण सिंह, राजा तेज सिंह
इन 10 पीढियों की बीतते बीतते अरोड़ तिरोल राज्य में विलय हो चूका था तिरोल के अगले राजा प्रताप सिंह ने अपने कार्यकाल 1682 के बीच अरोड़ के निकट के पुराने कस्बे रामनगर में एक किले का निर्माण करवाया,
यह किला इन्ही के नाम यानी प्रतापगढ़ के नाम से जाना जाने लगा तिरोल का मुख्यालय अब यही किला बन चुका था यहा राजाओ की आठ पीढ़िया और बीती जिनके नाम है.
क्रमशः राजा जय सिंह, राजा छत्रधारी सिंह, राजा पृथ्वी पद सिंह, राजा दुनिया पत सिंह, राजा बहादुर सिंह, बाबु अभिमान सिंह, बाबु गुलाब सिंह, राजा अजित सिंह,
सन 1860 के निकट सैनिक विद्रोह के भड़कने पर ब्रिटिश सरकार को कुछ और महत्वपूर्ण सुविधाए प्राप्त हुई बाद में अंग्रेजी सेना से संलग्न होने पर ब्रिटिश सरकार द्वारा पारितोषित के रूप में उन्हें तिरोल के रूप में पूरा स्टेट दे दिया गया 1866 में उन्होंने अपने संपत्ति से प्रतापगढ़ किले को खरीदकर मरम्मत के द्वारा पुनः पुराने राजाओ के स्मृतियों को पुनः जीवित किया
1 जनवरी 1877 को उन्होंने दोबारा राजा की उपाधि से विभूषित किया गया 18 दिसम्बर 1889 इनकी मृत्यु के बाद इनके पुत्र प्रताप बहादुर सिंह ने तिलोर राज्य की बागडोर थामी 1 जनवरी 1898 को राजा की उपाधि उन्हें विरासत में प्राप्त हुई राजा प्रताप बहादुर सिंह के अनुरोध पर ब्रिटिश सरकार ने तिलोर स्टेट का नाम बदलकर किला प्रतापगढ़ कर दिया गया 1920 में उन्हें राजा बहादुर की उपाधि से संवर्धित किया गया 18 जून 1921 को राजा प्रताप बहादुर की मृत्यु के बाद उनके सबसे छोटे पुत्र राजा अजित सिंह ने प्रतापगढ़ का संचालन किया 1962 एवं 1980 में प्रतापगढ़ लोकसभा से विजयी होकर 2 बार संसद निर्वाचित हुए एक्सिज़ एवं विदेश मंत्री का पदभार भी संभाला 6 जनवरी 2000 को राजा अजित सिंह की मृत्यु के उपरान्त उनके सबसे बड़े पुत्र अभय प्रताप सिंह ने प्रतापगढ़ किले का कार्यभार संभाला 1991 में जनता दल पार्टी के नेतृत्व में प्रतापगढ़ लोकसभा सीट से निर्वाचित होकर संसद के रूप में निर्वाचित हुए उनकी दो संताने हुई सबसे बडे पुत्र राजा अनिल प्रताप सिंह वर्तमान में सिटी प्रतापगढ़ में स्थित प्रतापगढ़ के इतिहासिक किले का संचालन करते है
प्रतापगढ़ के प्रमुख धार्मिक स्थल
- बेल्हा देवी
- किसान देवता मंदिर
- माँ पंचमुखी मंदिर
- भयहरण नाथ धाम
- घुइसरनाथ (घुश्मेश्वरनाथ) धाम
भक्ति धाम
- शनिदेव मंदिर
- चंदिकन देवी शक्तिपीठ
- शक्तिपीठ मां चौहर्जन धाम
- हौदेश्वर नाथ धाम
- बाबा बेल्खनाथ मंदिर
- कोटवा महरानी धाम
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