प्रयागराज के गढ़वा किले का 1500 साल पुराना इतिहास, History of Garhwa Fort

प्रयागराज के गढ़वा किले का 1500 साल पुराना इतिहास
History of Garhwa Fort Harshit


प्रयागराज के गढ़वा किले का 1500 साल पुराना इतिहास, History of Garhwa Fort
 History of Garhwa Fort

गढ़वा का किला एक सुनसान जंगल में चट्टानी पहाड़ी के बीच प्रकितिक रूप से सुखी हुई झील पर सफ़ेद एवं पीले विशालकाय पत्थरों से निर्मित एक रहस्यम  विशालकाय दुर्ग का अद्भुत दृश्य न ही ये मध्य प्रदेश है और न ही राजस्थान ये है उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जनपद का पश्चिमी क्षेत्र  यमुना नदी के उपर निर्मित नैनी को प्रयागराज से जोड़ने वाले अनूठे एवं विलक्षण सेतु से 36 किलोमीटर दूर 12 तहसील के अंतर्गत विकास खंड शंकरगढ़ जहां खान सेमरा नामक गाँव में प्रयागराज का विधुत उर्जा केंद्र NTPC है यहा से 5 किलोमीटर आगे राष्ट्रिय राजमार्ग 35 पर बेनीपुर चौराहा जिसके आगे है जिसके आगे है चित्रकूट एवं बुंदेलखंड किन्तु उत्तर दिशा की ओर शिवराजपुर से प्रतापपुर जनपद मार्ग पर 4 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गाँव है गढ़वा ! निश्चय है यहा घूम रहे स्थानीय लोगो के पूर्वजो ने मिल जुलकर अपने राजा के लिए एक विशाल पंच कोणीय परकोटे का निर्माण किया होगा दुर्ग के बाहर ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का सुचना पट किले के इतिहास का प्रसारण करता हुआ जिसके अनुसार दुर्ग के चारो ओर ऊँचे अहाते का निर्माण सन 1750 में बारह के बघेल राजा विक्रमादित्य द्वारा करवाया गया था !

लेकिन इस निर्जन स्थान पर  इसकी  आवश्कता क्या थी जब किले के भीतर प्राचीन मंदिरों के खंडित अवशेष एवं जलाशय के अतिरिक्त कुछ भी नही था !

समय आ गया है इतिहास की ओर प्रस्थान करने का 

आज से लगभग 1600 साल पहले अर्थात सन 400 के आसपास चन्द्रगुप्त दृतीय के शासन काल में कई हिन्दू मंदिरों का उल्लेख प्राप्त होता है यहा से लेकर बरगढ़ तक कई स्थानों पर भगवन विष्णु के 10 अवतारों के शिलाखंड एवं अनेक शिवलिंगों के अतिरिक्त भगवान बुद्ध की कई प्रतिमाये उस कालांश में आस्था का प्रसार करती थी यह क्षेत्र चन्द्रगुप्त, कुमारगुप्त, एवं स्कंदगुप्त के 200 वर्षो के प्रभाव में पोषित होता रहा ! यही वो समय था जब ये क्षेत्र  धन धान्य संपदा से परिपूर्ण रहा किन्तु सन 467 में स्कंदगुप्त की मृत्यु के बाद अगले 100 वर्ष के मध्य गुप्त वंश निरंतर धूमिल होकर इतिहास के पन्नो में अंकित हो गया इसके बाद ये क्षेत्र कई वर्षो तक भर राजाओ के अधिकार में रहा जिन्होंने भरगढ़ को अपनी राजधानी के रूप में चुना लेकिन शक्तिशाली सेना के आभाव में आक्रमणकारियों ने न सिर्फ कई मंदिरों की संपदा को लुटा बल्कि स्थानीय लोगो के जीवनयापन की समाग्री को भी तहस नहस किया बार बार होने वाले आक्रमण से कई सरे नगर वासियों ने यहा से पलायन किया लेकिन कुछ लोग अभी भी यही पर टिके रहे उन्हें आवश्कता थी एक ऐसे राजा की जो भट्ट ग्राम यानी आज के गढ़वा का विकास कर सके !

गुप्त वंश के बाद लगभग 1300 वर्ष बाहरी आक्रमणकारीयों के क्रूरता एवं लालच को सहते हुए बित गए सन 1750 में बारह के बघेल राजवंश में विक्रमादित्य ने भट्ट ग्राम का जीर्णोधार करना प्रारम्भ किया प्राचीन मंदिरों की सुरक्षा हेतु उनके चारो तरफ पंच कोणीय ऊँचे प्राचीर का निर्माण कराया चुकी गढ़वा का दुर्ग पहाड़ के तराई में निर्मित एक प्रकितिक झील के धरातल पर बना हुआ था अतः भूगर्भ जल की प्रचुरता का लाभ उठाते हुए स्थानीय लोगो की जल समस्या का निराकरण के लिए एक कुंवा एवं राजमहल के अंदर 2 जलाशय बनवाये गये एक पुरुष वर्ग हेतु व् अन्य स्त्रियों के स्नान आदि के लिए इसके बाद बघेल राजवंश के संस्थापक कंधार देव के बारहवे वंशज कसौटा रियासत के राजा हुक्म सिंह एवं उनके पुत्र शंकर सिंह ने भी किले का रखरखाव का पूरा ध्यान रखा कालान्तर में यह किला कई वर्षो तक अज्ञात रहा सन 1872 में अंग्रजो ने इस किले को खोजकर इस किले को संरक्षित किया गढ़वा से लेकर बरगढ़ के बीच जगह जगह कई हिन्दू देवी देवताओ एवं बुद्ध की प्रतिमाये प्राप्त हुई उन सभी प्रतिमाओ को संरक्षित रखने के लिए दुर्ग को संग्रहालय का रूप दे दिया गया शीघ्र ही यह दुर्ग एक संग्रहालय के रूप में प्रयागराज के भ्रमण पर आये हुए यात्रियों को आकर्षित करेगा ! 

यदि इतिहास में आपकी गहरी रूचि है तो निश्चय ही आपको यह ब्लॉग पसंद आया होगा और ज्ञान वर्धक लगा होगा हर दुर्लभ चीज को संरक्षित करना और दुसरो तक पहुचना भी हमारी जिम्मेदारी है इसलिए इस पोस्ट को दुसरो तक साझा भी करे ताकि ऐसे स्थानों के बारे में अधिक से अधिक लोगो को जानकारी प्राप्त हो सके जो अपनी भीतर हजारो साल का इतिहास बटोरे काल के प्रहार से नष्ट होते जा रहे है अगर आप प्रयागराज के आसपास रहते है तो समय निकल कर इस दुर्ग का भ्रमण अवश्य करे ! 
  
धन्यवाद .

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