इलहाबाद का इतिहास
आज इस पोस्ट में हम आज के प्रयागराज से लेकर प्राचीन के प्रयाग तक का सफर तय करेगे गंगा यमुना सरस्वती इन तीन नदियों का दुर्लभ संगम है
प्रयागराज का इतिहास |
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प्रयाग जिसका अर्थ है यज्ञ की पवित्र भूमि यंहा हर वर्ष माघ मेला तीसरे एवं छठे वर्ष अर्धकुम्भ एवं प्रत्येक 12 वर्ष में महाकुम्भ का आयोजन होता है इसमें करोडो की संख्या में श्रद्धालु संगम स्नान के लिए आते है इसलिए पोस्ट को पूरा अवश्य पढ़े
प्रयागराज का प्राचीन इतिहास
1540 में शेरशाह हिन्दुस्तान का शासक बना। 1557 में झूंसी एवं प्रयाग के अधीन ग्राम मरकनवल में जौनपुर के विद्रोही गवर्नर और अकबर के मध्य एक युद्ध लड़ा गया था।
विजय के उपरांत अकबर एक दिन में ही प्रयाग आया और वाराणसी जाने के पूर्व दो दिनों तक यहां विश्राम किया। अकबर वर्ष 1575 में पुनः प्रयाग आया और एक शाही शहर की आधारशिला रखी।
जिसे उसने इलाहाबास कहा। अकबर के शासन के अधीन नवीन शहर तीर्थयात्रा का अपेक्षित स्थान हो गया था।
इस क्षेत्र के मौर्य साम्राज्य के अधीन आने के पश्चात् कौशाम्बी को अशोक के प्रांतों में से एक का मुख्यालय बनाया गया था। उसके अनुदेशों के अधीन दो अखण्ड स्तम्भों का निर्माण कौशाम्बी में किया गया था।
जिनमें से एक बाद में प्रयागराज स्थानांतरित कर दिया गया था। मौर्य साम्राज्य की पुरातन वस्तुएं एवं अवशेषों की खुदायी, जिले के एक अन्य महत्वपूर्ण स्थान भीटा से की गयी है।
मौर्य के पश्चात् शुंगों ने वत्स या प्रयागराज क्षेत्र पर राज्य किया। यह प्रयागराज जिले में पाई गई शुंगकालीन कलात्मक वस्तुओं से सिद्ध होता है।
शुंगों के पश्चात् कुषाण सत्ता में आए- कनिष्क की एक मुहर और एक अद्वितीय मूर्ति लेखन कौशाम्बी में पाई गई।
कौशाम्बी, भीटा एवं झूंसी में गुप्त काल की वस्तुएं मिलता इसकी प्राचीनता का सिद्ध करता है। अशोक स्तम्भ के निकाय पर समुद्रगुप्त की प्रशस्ति की पंक्तियां खुदी हुई हैं जब कि झूंसी में वहां उसके पश्चात् नामित समुद्र कूप विद्यमान है।
गुप्तों के पराभव पर प्रयागराज का भविष्य विस्मृत हो गया। हृवेनसांग ने 7वीं शताब्दी में प्रयागराज की यात्रा की थी और प्रयाग को मूर्तिपूजकों का एक महान शहर के रूप में वर्णित किया था।
प्रयागराज का आधुनिक इतिहास
इलाहाबद वह भूमि है जो हमेशा महान व्यक्तयो को प्रकाशित किया है
जैसे जवाहर लाल नेहरु लाल बहादुर शास्त्री इंदिरा गाँधी राजिव गाँधी गुलजारी लाल नंदा विश्वनाथ प्रताप सिंह मदन मोहन मालवीय, हरिवंश राय बच्चन, अमिताभ बच्चन आदि अनेक नाम है जिनके बारे में अलग से एक पोस्ट बन सकती है,
जिस प्रयागराज को हम देखते है उसे बनने में हजारो वर्ष लगे है इस बदलाव में सबसे बड़ा हाथ अंग्रेजो एवं मुगलों का रहा है
पुराना यमुना पुल, गंगा पुल, इलाहबाद विश्वविद्यालय, कंपनी गार्डन, इलाहबाद संग्रहालय, आल सेंट कैथरल, उच्च न्यायलय, इलाहबाद स्टेशन आदि का निर्माण अंग्रेजो के शासन काल में किया गया
संगम में बनाया गया अकबर का विशाल किला, एवं खुसरो बाग़ को अकबर के पुत्र जहागीर ने अपने पुत्र खुशरो के नाम पर बनवाया था
विशेषज्ञों का मानना है की इस भूमि की अध्यात्मिक प्रभाव में अकबर 1583 में अकबर ने सरस्वती नदी के ठीक उपर इस किले का निर्माण कराने के साथ ही प्रयाग का नाम बदलकर अल्लाहबाद कर दिया था जो बाद में इलाहबाद के नाम से प्रसिद्ध हुआ जिसका अर्थ है अल्लाह का शहर .
किले के भीतर जमींन में बनी मंदिर इस बात का प्रमाण देती है की सरस्वती नदी किले के निचे बहती हुई एवं गंगा यमुना के साथ मिलकर त्रिवेणी संगम का निर्माण करती है
पातालपुरी मंदिर के निकट ही अक्षयवट का प्राचीन वृक्ष पुराणों के के अनुसार सरस्वती के तट पर स्थित था
कुछ लोगो का यह भी मानना है की सरस्वती का अस्तित्व प्रयाग की इस भूमि पर कभी था ही नही लेकिन जलपुरुष कहे जाने वाले समाज शेखर जी जैसे कुछ लोग इस बात से सहमत नही है.
ब्रिटिश राज में इलाहाबद का इतिहास
ब्रिटिश हुकूमत के समय इलाहाबाद (अब प्रयागराज) का जलवा देश भर में था। मुगल शासकों के लिए प्रयागराज का जितना महत्व था उतना ही अंग्रेजों के समय रहा था। ब्रिटिश सरकार के समय प्रयागराज संयुक्त प्रांत की राजधानी रहा था।
यहां अंग्रेजों ने उच्च न्यायालय से लेकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। अकबर के किले में सेना रहती थी।
आज का मेडिकल कालेज अंग्रेज गर्वनर का आवास हुआ करता था। अल्फ्रेड पार्क (अब आजाद पार्क) अंग्रेज अफसरों का सैरगाह था। इसके आसपास उनके आवास थे।
एक नवंबर 1858 को ब्रिटिश सरकार ने प्रयागराज में एक शाही दरबार का आयोजन किया था। तब इस शहर को एक दिन भारत की राजधानी बनने का गौरव मिला था। इलाहाबद की बदनाम गली मीरगंज में 14 नवम्बर 1889 को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी का जन्म हुआ था
आनंद भवन जिसे मोतीलाल नेहरु ने ख़रीदा था यहा महात्मा गाँधी से लेकर जवाहरलाल नेहरु सुभाषचंद्र बोस, मोहम्मद अली जिन्नाह जैसे बहुत सी प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का गढ़ हुआ करता था.
इलाहाबद के अल्फ्रेड पार्क जिसे आज हम कंपनी बाग़ के नाम से जानते है यही पर भारत के लाल चंद्रशेखर आजद भी शहीद हुए थे.
इलाहाबद के ही शाही दरबार में महरानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र पढ़ा गया था ! जिस स्थान पर शाही दरबार का आयोजन हुआ था, उसे 1910 में स्मारक स्थल बना दिया गया। 1858 में यहां रानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र पढ़ा गया था।
पूरे 52 वर्ष बाद इस अवसर की वर्षगांठ पर उस समय के वाइसराय लार्ड मिंटो ने मेमोरियल बनाया। लार्ड मिंटो की वजह से इस स्थान का नाम मिंटो पार्क पड़ा।
हालांकि अब इस पार्क का नाम बदलकर मदन मोहन मालवीय पार्क कर दिया गया है। यह पार्क किले के पास और यमुना तट पर है
इलाहाबद घुमने योग्य स्थान
प्रयागराज का इतिहास तो हम जान चुके है अब हम बात कर लेते है प्रयागराज हमने योग्य प्रमुख स्थानों के बारे में
- त्रिवेणी संगम
- अल्फ्रेड पार्क
- इलाहाबद का किला
- नैनी पुल
- आनंद भवन
- इलाहाबाद संग्रहालय
- गढ़वा का किला
- झालवा वाटर पार्क
- इलहाबाद मेमोरियल
प्रयागराज आज के समय में शिक्षा का महत्वपूर्ण गढ़ बन चूका है दूर दूर से छात्र सरकारी नौकरी के लिए तयारी करने आते है यह सबकुछ संभव हो सका
तो वह है इलाहाबाद विश्वविद्यालय की वजह से इस विश्व विद्यालय में भारत एवं विश्व के कोने कोने से छात्र अपनी पढाई पूरी करने के लिए आते है .
तो ये था प्रयागराज का प्राचीन से लेकर आधुनिक प्रयागराज तक का सफर हमने अपने लेख में किया अगर पसंद आया हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर अवश्य करे धन्यवाद