90 दशक की यादे, Memories of 90s
आजकल जंहा हमारा जीवन एक स्मार्ट फ़ोन में आकर टिक गया है आजकल क्या बड़े बूढ़े सब जिसे देखो वही मोबाइल में बात कर तो कोई विडियो गेम खेल रहा है यही नही आजकल तो घर के बुजुर्ग भी घर से ही चारो धाम की यात्रा अपने मोबाइल फ़ोन से ही कर रहा है | 90 दशक की यादे
90's की यादे |
क्या आपको नही लगता की इस आधुनिक दुनिया में हमने अपना बहुत कुछ खो दिया मुझे आज भी याद आते है अपने बचपन के दिन जब गाँव के खलिहानों में हम क्रिकेट, गुल्ली डंडा, चिल्हो, खो और भी बहुत से खेल
अपने दोस्त भाई बहनों के साथ खेलते थे और इससे हमारा शरीर कभी फूर्त और स्वस्थ रहता है |
लेकिन आज कल के बच्चे पढाई हो या कोई गेम ऑफलाइन नही बल्कि ऑनलाइन खेलते है | जिससे वो चिडचिडापन और depression का शिकार हो रहे है.
खैर इसके बारे में हम कभी और बात करेगे चलिए चलते है अपने बचपन की उन यादो को फिर से ताजा करते है |
90 दशक की यादे.
माँ का पल्लू
माँ का पल्लू एक ऐसा साधन होता था जिसकी मदद से कई साध सध जाते थे जब घर में कोई अजनबी या पडोसी हमारी शिकायत लेकर आता था तो माँ के पल्लू में छिप जाया करते थे |
जब हमे पैसे की आवशकता होती तो माँ के पल्लू की गांठे खोलकर हम धनी हो जाया करते थे खाना खाकर मुह पोछने के लिए तौलिया कौन ढूढे माँ का पल्लू है न जब कभी सोते समय मच्छर तंग करते तो बिन कहे माँ का आंचल अपने उपर पाते|
सही मायनो में माँ के आंचल में हमने अपने जीवन को पनपते हुए देखा है जिसकी कमी आज भी बहुत महसूस होती है |
बचपन के खेल
बचपन में जंहा हमे हर खेल पसंद था तो वही हर खेल में खतरा भी बहुत था मनोरंजन के साथ हमारा निशानारोमांच पर भरपूर रहता था | कुछ खेल हम खुल के खेलते थे तो कुछ खेल छुपाने पड़ते
जैसे तांश, लट्टू और कंचे जिन्हें खेलते हुए पकडे गए तो समझो बहुत बड़ा पाप कर दिया और हो जाता हमारा बंटा धार घर वाले हो पडोसी हो या हो गुरूजी जिसे भी खबर लग जाती वही हमारी वाट लगा देता |
वैसे बचपन का एक प्रसिद्ध मनपसंद खेल जो शायद हर लड़की ने खेला ही हो ‘’घर घर ‘’ इसे सब भाई बहन मिलकर मम्मी पापा बन जाते झूठ मुठ का खाना, मिटटी से, पानी से बना देते थे पूरा किचन सेट रहता था
उसमे सारे छोटे छोटे बर्तन गैस चूल्हा मम्मी का दुपट्टा ओढ़कर मम्मी की एक्टिंग करते थे छोटे भाई को अक्सर रामू काका बना देते थे क्युकी वो जिद करते की हमे भी खिलाओ | 90 दशक की यादे
कॉमिक्स लव
याद है हम अपने बचपन में ..बहूऊऊऊऊ करके रोते थे और बुक्का फाड़ के हस्ते थे बिल्लू के आँखों से बाल हटाकर उसकी आंखे देखने की नाकाम कोशिश करते थे |
जुपिटर के लोगो की इतनी लम्बाई होगी, वैसे कोई बताएगा महानगर से राजनगर की दुरी सुपर कमांडो धुर्व और नागराज अपनी बाइक पर बैठ कर कितनी जल्दी कवर लेते थे वैसे पन्ने पलटते ही वो अपनी जगह पहुच जाते थे ..
चंडिका की फाइट देखि... जैसे माँ पढाई न करने पर बच्चो को पीटती है वैसे हमे अपने घर के बच्चो को ठोक ठोककर कोमिक्स पढने की आदत डालनी चाहिए ताकि वो मोबाइल नाम के जहर से बचे रहे और वो भी उन दिनों को जी सके जो हमने महसूस किया है |
90 दशक की यादे
बरसात का मौसम
बचपन के दिनों में स्कूल जाते हुए जब बारिश के दौरान पानी भर जाता था तो हम अक्सर कहा करते थे, गंगा जी भर गई और उस दौरान एक अलग ही ख़ुशी मिलती थी और आज थोडा सा भी पानी भरा देखकर इसलिए उदास हो जाते है की अब पेंट उपर करके चलना होगा |
सायकिल सिखने का संघर्ष
बाल अवस्था से बाहर आते ही जब हम पहला कदम चले तो बहुत ख़ुशी हुई फिर दौड़ने लगे और फिर उड़ने की सोचने लगे |
बचपन में उड़ान भरने का एकमात्र साधन था ‘’सायकिल ‘’ जिसे चलाने के लिए भी हमें कठिन इम्तेहान और चरण का सामना करना पडता था, चोरी से सीखना, गिरना, पैरो का छिलना, आधे पैडिल मारते हुए जी तोड़ कोशिश और पैर छोटे होने पर भी हिम्मत दिखाने का संघर्ष सच में हम बड़े हिम्मत वाले थे
और चोरी से सायकिल चलाने की वजह से पिटाई खाने वाले भी क्या आप भी ऐसे थे.
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💖Thank you so musch bhai Apki post bhot Hi Jada achhi lgi o bhi kya din the or aaj bhi kya din hai.
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